VIJAY KUMAR BOHRA ' s BLOG
मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास
मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास
बुरा नहीं है सपने देखना। नहीं, बिल्कुल भी नहीं। बुरा है, सपने देखते ही रहना। नहीं करना कोशिश, उनको पूरा करने की। या,…
Read more »“नहीं!” - मारे आतंक और भय के अपनी पूरी ताकत लगाकर चिल्लाते हुए बोल रहा था रॉकी - “मुझे नीचे मत फेंको। मेरे पिता इंस्पेक…
Read more »रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 1 श्रद्धा और दक्ष रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 2 कल रात की घटना रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 3 दो घटनाएं रहस्…
Read more »रॉकी ने अपनी पॉकेट से मोबाइल निकालकर उसमें समय देखा। तीन बजकर तीस मिनट हो रहे थे। “पता नहीं ये किस मुसीबत में फंस गया …
Read more »कुछ ही समय बाद वे सभी गुफा के बाहर खड़े थे। रॉकी और उसके साथी समझ नहीं पा रहे थे कि स्टोनमैन उनको वहां पर क्यों लाया …
Read more »आत्मसम्मान प्यारा होता है सभी को आत्मसम्मान अपना। होते हैं प्रेमी सभी आत्मसम्मान के। चाहना इसको करना रक्षा इसकी नह…
Read more »वक्त सबका आता है कभी हंसाता कभी रुलाता है। होते हैं कुछ लोग व्यस्त बहुत या करते हैं दिखावा व्यस्तता का। होता है वक…
Read more »रात का वह समय, जबकि सब लोग पूरे दिन की थकान के बाद गहरी नींद में सोए हुए थे। उसके लिए अपने मिशन पर निकलने का समय था।…
Read more »हर वक्त सोचता हूं तुझे हर वक्त याद करता हूं। मिल जाए मुझको कोहिनूर ये मेरा रब से बस यही फरियाद करता हूं। जागते हुए …
Read more »“हम फिर से सोने जा रहे हैं।” - स्नेहा बोली - “पर तुम तो बहुत जल्दी नहीं उठ गई हो ?” “मैं तो रोज 4 बजे ही उठ जाती हूं।”…
Read more »कविताएं लिखना बहुत ही सरल होता है। बस मन होना चाहिए। नए साल पर देख रहा हूं। हर तरफ कविताएं लिखी जा रही है। सोचा, मैं …
Read more »